छत्तीसगढ़नई दिल्लीराष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समाचार

सुप्रीम कोर्ट में EVM और VVPAT पर जांच के मामले पर तीव्र बहस

वोटिंग प्रक्रिया में बदलाव की मांग के बीच न्यायिक उपाय की तलाश

       नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मामले में, वीवीपैट पर्चियों की 100% क्रॉस-चेकिंग की मांग पर बहस हो रही है। इस मुद्दे पर याचिकाकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल ने अपनी याचिका में बताया कि वोटर्स को VVPAT पर्ची की फिजिकल वेरिफिकेशन का मौका देना चाहिए। यहां तक कि उन्होंने बताया कि वोटर्स को बैलेट बॉक्स में स्वयं पर्ची डालने की सुविधा भी दी जानी चाहिए। उनके दावे के आधार पर, ऐसा करने से चुनाव में गड़बड़ी की आशंका खत्म हो जाएगी।

       इस विवाद में वकील प्रशांत भूषण, गोपाल एस और संजय हेगड़े ने याचिका का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि EVM चिप को प्रोग्राम किया जा सकता है और यूरोपियन देशों में बैलट पेपर्स पर वापसी हो चुकी है।

       जस्टिस संजीव खन्ना ने इस बात को त्यागते हुए कहा कि फैक्ट यह है कि EVM को प्रोग्राम किया जा सकता है। परन्तु, वे इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहते थे।

       प्रशांत भूषण ने अपने दलीलों को जारी रखते हुए कहा कि अगर EVM और VVPAT के तालमेल में अंतर पाया जाता है, तो इसे नजरअंदाज किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को सुनते हुए उन्हें 2 बजे तक अपने पॉइंट्स लिखित में प्रस्तुत करने को कहा।

       बाद में, वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट को दो विकल्पों पर विचार करने के लिए कहा। पहला विकल्प था कि पेपर बैलट प्रणाली को फिर से लागू किया जाए। दूसरा विकल्प था कि वोटर्स को VVPAT की स्लिप दे दी जाए और वे इसे बैलेट बॉक्स में डाल सकें।

       जस्टिस संजीव खन्ना ने उनकी दलील को समझा लिया और उन्हें समझा दिया कि वह उनकी दलील को समझ गए हैं।

       वीवीपैट की स्लिप्स को भी गिनने की मांग करते हुए, वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा कि वोटों के मिलान के लिए 60 करोड़ VVPAT स्लिप्स को गिनने की जानी चाहिए।

       चुनाव आयोग ने 24 लाख VVPAT खरीदने के लिए 5 हजार करोड़ रुपए खर्च किए हैं, लेकिन केवल 20,000 VVPAT की पर्चियों का ही वोटों से वेरिफिकेशन किया जा रहा है।

       VVPAT मशीन वोट वेरिफिकेशन सिस्टम का हिस्सा होता है, जिससे यह पता चलता है कि कि वोट सही तरीके से गया है या नहीं। जब वोटर EVM में किसी पार्टी का बटन दबाता है, तो VVPAT में उस पार्टी के नाम और सिंबल की एक पर्ची प्रिंट होती है। यह पर्ची मशीन के ट्रांसपेरेंट विंडो पर 7 सेकेंड तक दिखती है और वोटर को यह पता चलता है कि उसका वोट सही गया है या नहीं। इसके बाद यह पर्ची VVPAT मशीन में जाती है।

       यह विवाद पहले भी सुप्रीम कोर्ट में उठा था। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले, 21 विपक्षी दलों ने EVM के वोटों से कम से कम 50 फीसदी VVPAT पर्चियों के मिलान की मांग की थी। उस समय चुनाव आयोग हर निर्वाचन क्षेत्र में सिर्फ एक EVM के वोटों का VVPAT पर्चियों से मिलान करता था।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker