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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष: एक सांस्कृतिक दृष्टि

हिंदू समाज के संगठन: आरएसएस की उत्कृष्टता की कहानी

 

       नई दिल्ली। आरएसएस के 100 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमित शाह की अगुवाई में हुई श्रद्धांजलि समारोह में बातचीत के बाद आया सभाध्यक्ष का ऐलान। इस विषय पर वार्तालाप से पता चला कि आरएसएस में सरसंघचालक का चयन अनूठा होता है। ना चुनाव, ना मनोनयन, फिर भी कैसे बनता है सरसंघचालक का चयन, इस प्रश्न को हल करने की वह राह सीखी जा सकती है जो आरएसएस ने अपने 100 वर्षों के संघर्ष में चुनी है।

उच्च स्तर की नियुक्तियों में एक अनोखा तरीका

       वरिष्ठ पदाधिकारियों के मुताबिक, आरएसएस के सरसंघचालक का चयन अनूठा तरीके से होता है। यहाँ कोई चुनाव नहीं होता, ना ही मनोनयन। बल्कि उन्हें सर्वसम्मति से नियुक्त किया जाता है। प्रथम सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार के निधन के बाद, गुरुजी को यह जिम्मा सौंपा गया था। उसके बाद भी देवरस के लिए सर्वसम्मति से पर्ची लिखी गई थी, जिसमें उन्हें सरसंघचालक बनाने की बात कही गई थी।

मोहन भागवत: एक नया उत्तराधिकारी

       जब आरएसएस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपनी गवाही में कहा कि संगठन के सभी प्रमुख उन्हें सरसंघचालक बनाने की सर्वसम्मति देने के लिए मंथन कर रहे थे, तो यह स्पष्ट हो गया कि मोहन भागवत के लिए रास्ता साफ है। उन्हें अचानक संघ के सर्वसम्मति से सरसंघचालक बनाया गया।

       आरएसएस के 100 वर्षों की ऊर्जा और संघर्ष को देखते हुए यह उदाहरण दिखाता है कि संगठन की विचारधारा और संस्कृति में अद्वितीयता है। चुनौतियों का सामना करने के लिए नए और सोची समझी दृष्टिकोण विकसित करना आवश्यक होता है, और आरएसएस ने इसे साबित किया है।

आखिरी वचन: आरएसएस के 100 वर्ष का सफर एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है – समर्थन, संगठन, और संघर्ष का सफर किसी भी परिस्थिति में सफलता की कुंजी होता है।

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